कश्मीर में डैफोडिल की उन्नत खेती | Advanced Daffodil Cultivation: The Key to Success in Kashmir

डैफोडिल 'नार्सिसस' वंश का पुष्प है, जो वसंत के मौसम में सबसे अधिक खिलने वाले फूलों में से एक है। इसके फूल आकर्षक रंग और विभिन्न जलवायु में मनमोहक खूबसूरती बिखेरने के लिए जाने जाते हैं। फूल सफेद से पीले अनेक रंगों में पाए जाते हैं। पौधे की पत्तियां लंबी और पतली होती हैं। डैफोडिल व नरगिस एक ही परिवार के मंद-मधुर सुगंध वाले पौधे हैं। कश्मीर की हल्की गर्मी और सर्दियों की विशेषता वाली अद्वितीय समशीतोष्ण जलवायु डैफोडिल की खेती के लिए बहुत ही उपयुक्त होती है। साथ ही पुष्पों का विकास बहुत ही अच्छा होता है। यहां का तापमान और मौसम की परिस्थितियां डैफोडिल की अच्छी वृद्धि के लिए अनुकूल पाई जाती हैं।


कश्मीर में डैफोडिल की उन्नत खेती  Advanced Daffodil Cultivation The Key to Success in Kashmir


डैफोडिल का दुनिया के विभिन्न स्थानों में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व रहा है। वसंत के आरंभ में डैफोडिल्स का खिलना सर्दियों के पूर्ण होने का संकेत देता है, जो नवीन और गर्म मौसम के आगमन का प्रतीक है। डैफोडिल को सौंदर्यकरण के लिए बगीचों में तथा व्यावसायिक पुष्प उत्पादन दोनों के लिए उगाया जाता है। कश्मीर में, डैफोडिल फूल को न केवल इसकी सुंदरता के लिए सराहा जाता है, बल्कि यह कश्मीर में फूलों की खेती में भी अपना अग्रणी स्थान रखता है। डैफोडिल का उपयोग कतरित या खुले पुष्पों की तरह सजावट के रूप में करने के साथ-साथ उच्च मूल्य का तेल तथा इत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।

कश्मीर में डैफोडिल की खेती के क्षेत्र को बढ़ाकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है। इसकी खेती के लिए उपयुक्त स्थान का चयन, मिट्टी की तैयारी और कीट प्रबंधन सहित उत्पादन की तकनीकों के ज्ञान द्वारा किसान एवं बागवान उच्च गुणवत्ता वाले डैफोडिल पुष्प का उत्पादन कर सकते हैं जो घरेलू और निर्यात दोनों बाजार की मांगों को पूरा कर सकता है।

कश्मीर में डैफोडिल उत्पादन के लिए अनुकूल परिस्थितियों तथा अलंकृत बागवानी में बढ़ती रुचि इसकी खेती के लिए आशाजनक अवसर प्रदान करती है।


उपयुक्त प्रजातियां: किंग अल्फ्रेड, माउंट हुड, कार्लटन, ड्रीम लाइट, फरवरी गोल्ड, जेट फायर, हावीरा, एवलॉन्च, पेपर व्हाइट, कसाटा आदि।


जलवायु तथा भूमि का चयन: डैफोडिल के लिए पूर्ण प्रकाश से लेकर आंशिक छाया तथा अच्छी जल निकासी वाले स्थान का चयन करें क्योंकि ये फूल ऐसे स्थानों को पसंद करते हैं जहां प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे धूप रहे। मिट्टी की उचित तैयारी पुष्पों की उत्पादकता तथा गुणवत्ता को बढ़ाती है।

डैफोडिल की सफलतापूर्वक खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 7.0 के बीच होना आवश्यक है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट तथा अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। शरद ऋतु में गहरी जुताई (20-25 सेमी) करके खेत की मिट्टी तैयार करके इसमें जुताई के समय अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद (10-15 टन/हेक्टेयर) मिलानी चाहिए।


कंद चयन और बुवाई: पुष्पों की गुणवत्तायुक्त उपज के लिए प्रति वर्ग फुट चार कंद (बल्ब) लगाने चाहिए। पुष्पण के लिए 10-12 सेमी परिधि के स्वस्थ, रोगमुक्त बल्बों का चयन किया जाता है। कश्मीर में डैफोडिल के कंदों को सितंबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के प्रथम सप्ताह तक लगा सकते हैं। इस समयावधि में कंदों में सर्दियों से पहले ही जड़ों का विकास हो जाता है। यह एक अच्छी फसल के लिए बहुत ही आवश्यक है। कंदों को मिट्टी में लगाने की उपयुक्त गहराई 15-20 सेमी रखनी चाहिए। सामान्य रूप से कंद के आकार से 2-3 गुना अधिक गहराई पर कंदों की बुवाई करनी चाहिए। कंदों की बुवाई करते समय पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 20-25 सेमी तथा कंद से कंद की दूरी 10-15 सेमी रखनी चाहिए। कंदों की बुवाई करते समय नुकीले सिरे को ऊपर की ओर रखना चाहिए। कंदों को लगाने के पश्चात मिट्टी से ढक देना चाहिए।


सिंचाई: कंदों की बुवाई के तुरंत बाद कंदों को पानी अवश्य देना चाहिए। पौधों की वृद्धि और विकास के लिए नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से वसंत ऋतु में जब पौधे वानस्पतिक वृद्धि के लिए तेजी से बढ़ रहे होते हैं। इसके अतिरिक्त अधिक पानी नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे कंदों के सड़ने की आशंका बनी रहती है। पौधों में पुष्पण होने के पश्चात पानी देना कम कर देना चाहिए क्योंकि इस समय पानी देने से पुष्प गुच्छों के झड़ने की आशंका बनी रहती है तथा पत्तियां भी मुरझाने लगती हैं। इसके साथ ही कंदों को परिपक्व होने और आने वाले मौसम के लिए ओजस्वी बनने में मदद मिलती है।


खाद तथा उर्वरक: मिट्टी की तैयारी के समय 10 किग्रा गली-सड़ी गोबर की खाद प्रति वर्ग मीटर से मिलानी चाहिए। नाइट्रोजन की 75-100 किग्रा/प्रति हेक्टेयर मात्रा पौधे की पत्तियों और समग्र वृद्धि के लिए आवश्यक होती है। फास्फोरस की 60-80 किग्रा प्रति हेक्टेयर मात्रा, कंदों के विकास और फूलों के उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है। पोटाश की 100-150 किग्रा प्रति हेक्टेयर मात्रा, पौधे की समग्र शक्ति और रोगों से सहनशीलता को बढ़ाती है, साथ ही फूलों की गुणवत्ता को सुधारती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा कंदों की बुवाई के समय मिलाएं तथा शेष मात्रा को पत्तियों के आने के समय देनी चाहिए। नाइट्रोजन की प्रथम आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूर्ण मात्रा कंदों की बुवाई के समय देनी चाहिए।


खरपतवार प्रबंधन: खरपतवारों से पोषक तत्वों और सूर्य प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा को कम करने के लिए, विशेष रूप से कंदों की बुवाई के 30-35 दिनों पश्चात पहली निराई-गुड़ाई करनी बहुत ही आवश्यक है। इसके उपरांत खरपतवारों को दबाने, मिट्टी की नमी बनाए रखने और मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करने के लिए पौधों के चारों ओर जैविक आच्छादन (जैसे, पुआल या सूखी पत्तियां) बिछा देना चाहिए।


कीट एवं रोग प्रबंधन: संभवतः एफिड्स, कंद माइट्स और नेमाटोड डैफोडिल को प्रभावित करते हैं। एफिड के नियंत्रण के लिए कीटनाशक, साबुन या नीम के तेल का उपयोग करना चाहिए और नेमाटोड को रोकने के लिए खेत की तैयारी के समय मिट्टी को मेथाम सोडियम अथवा फॉर्मेलिन से निर्जर्मीकृत करना चाहिये। डैफोडिल के प्रमुख रोगों में बेसल रॉट, ग्रे मोल्ड और मोजेक वायरस हैं। पौधों को इन रोगों के प्रकोप से बचाने के लिए फसलचक्र अपनाना चाहिए। रोगमुक्त कंदों का चयन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अत्यधिक पानी देने से भी बचना चाहिए। पौधों पर रोगों का अधिक संक्रमण होने की अवस्था में गुणवत्तायुक्त कवकनाशी का प्रयोग करना चाहिए।


पुष्पण और कटाई: आमतौर पर कश्मीर में, डैफोडिल का पुष्प खिलने का समय मार्च से अप्रैल के मध्य होता है। यह प्रजातियों की विविधता और रोपण के समय पर निर्भर करता है। कतरित पुष्पों (कट फ्लावर) के लिए, जब कलियाँ पूरी तरह से विकसित हो जाएं, तब उन्हें खिलने से पहले काट लेना चाहिए। पुष्पों की सर्वोत्तम गुणवत्ता के लिए सुबह के समय तनों को आधार से काटना चाहिए। वहीं वाष्पशील तेल निकालने के लिए प्रारंभिक अवस्था में परिपक्व कलियों और खिले हुए फूलों को सुबह 5-8 बजे के मध्य तोड़ लेना चाहिए।


पैदावार: औसत रूप से 50,000 से 2,00,000 कटे फूल एवं 30,000 से 60,000 कंद प्रति हेक्टेयर की उपज सहज रूप से प्राप्त हो जाती है।


पुष्पों का कटाई उपरांत प्रबंधन: पुष्पों को शीघ्र मुरझाने से बचाने के लिए कटे हुए फूलों को काटने के उपरांत तुरंत पानी में रख देना चाहिए। फूलदान में फूलों की जीवन आयु बढ़ाने के लिए 2-4 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भंडारण करना चाहिए।


कंदों का रखरखाव: पुष्पण आने के पश्चात, पत्तियों को प्राकृतिक रूप से सूखने देना चाहिए। यह प्रक्रिया कंदों को आने वाले वर्ष के लिए ओजस्वी बनने में मदद करती है। पत्तियों के सूख जाने के बाद, कंदों को भूमि से निकालकर इकट्ठा करके, उन्हें साफ करना चाहिए। कंदों को आने वाले वर्ष में रोपण के लिए ठंडे और सूखे स्थान पर रखना चाहिए। डैफोडिल के कंदों के गुच्छों को प्रत्येक 3 से 4 साल में विभाजित करके प्रसारित किया जाना चाहिए। इससे कंदों की ओजस्विता बनी रहती है और उनकी संख्या में निरंतर वृद्धि बनी रहती है।

Post a Comment

और नया पुराने

ylliX

ylliX