फूलों की दुनिया में गुलाब का सर्वोत्तम स्थान है। गुलाब एक सर्वाधिक लोकप्रिय पुष्प है। बाइबिल और प्राचीन संस्कृत में वर्णन के अनुसार गुलाब का इस्तेमाल रोम और भारत में शौकीन मनुष्यों द्वारा किया जाता था। आयुर्वेद में भी गुलाब की विशेषता का वर्णन किया गया है। गुलाब को फूलों की रानी कहा गया है। यह दक्षिणी एशिया, चीन, जापान, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी पूर्वी अफ्रीका और भारत के मैदानी व पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। गुलाब कट फ्लावर, लूज फ्लावर, गुलकंद, सुगंध तेल इत्यादि उद्देश्यों के लिए उगाया जाता है। सभी व्यावसायिक तौर पर महत्वपूर्ण पुष्पों में गुलाब दुनिया में पहले स्थान पर है। सुगंधित वर्ग के गुलाब की प्रजातियों का उपयोग लूज फ्लावर, तेल, कंक्रीट, गुलाब जल इत्यादि के लिए किया जाता है।
गुलाब बहुवर्षीय पौधा है। इसके पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए आवश्यकतानुसार जलवायु का होना अति आवश्यक है। पौध रोपण के समय वातावरण का ठंडा होना जरूरी है। जलवायु के अंतर्गत प्रकाश, तापमान, आपेक्षिक आर्द्रता एवं कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता पौधे की वृद्धि एवं विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है।
प्रकाश: प्रकाश का गुलाब के पौधों की वृद्धि एवं विकास पर बहुत ही प्रभाव पड़ता है। गुलाब को न ही कम एवं अधिक प्रकाश अवधि की आवश्यकता है बल्कि अधिक प्रकाश की तीव्रता होनी चाहिए। प्रकाश की तीव्रता तथा तापमान कम हो तो गुलाब में पुष्प नहीं आता है।
तापमान: गुलाब के पौधों की वृद्धि एवं पुष्पण पर तापमान का बहुत प्रभाव देखा गया है। इसके पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए तथा जब बादल हो उस समय 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए।
आर्द्रता: गुलाब का पुष्प उत्पादन करने के लिए अधिक वर्षा वाले क्षेत्र का चयन नहीं करना चाहिए। वर्षा अधिक होने पर वातावरण में आर्द्रता बढ़ जाने के कारण कवक से होने वाले रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है। वातावरण में आर्द्रता कम एवं अधिक होना गुलाब के लिए हानिकारक होता है। आर्द्रता कम होने पर गुलाब के पौधों पर लाल मकड़ी का प्रकोप बढ़ जाता है।
कार्बन डाइऑक्साइड: वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का होना पौधों के बढ़वार के लिए बहुत जरूरी है। कार्बन डाइऑक्साइड की उचित सांद्रता होने पर पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बढ़ जाती है एवं पौधे अधिक मात्रा में भोजन बनाते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता के साथ प्रकाश का होना पौधों की बढ़वार के लिए बहुत ही जरूरी है।
मिट्टी तथा क्यारी की तैयारी: गुलाब की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। बलुई दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा भरपूर हो, गुलाब की खेती के लिए सर्वोत्तम पाई गई है। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच में होना चाहिए। मिट्टी परीक्षण के उपरांत पोषक तत्व की उपलब्ध मात्रा के अनुसार अतिरिक्त, गोबर की सड़ी खाद, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सूक्ष्म पोषक तत्व हेतु उर्वरकों को मिट्टी में मिलाना चाहिए। खुले खेत में गुलाब की गुणवत्ता पुष्प उत्पादन के लिए 4 से 5 मीटर चौड़ी एवं सुविधानुसार लंबी क्यारियां बनानी चाहिए।
कटाई-छंटाई: गुलाब की खेती करने के लिए इसके पौधों की कटाई-छंटाई बहुत ही महत्वपूर्ण है। गुलाब का पौधा रोपण के पश्चात पौधों से नई शाखाएं निकलती हैं। जब पौधों पर अधिक शाखाएं विकसित हो जाती हैं उसके उपरांत प्रत्येक पौधे से 4 से 6 स्वस्थ शाखा को छोड़कर काट देते हैं। इस प्रकार नए पौधों में कटाई-छंटाई की जाती है। गुलाब के पौधों को काटने-छांटने के उपरांत फफूंदनाशक कैप्टॉन 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
प्रवर्धन
कलम विधि द्वारा: कलम की लंबाई औसतन 9 इंच एवं मोटाई पेंसिल जैसी रखी जाती है। कलमों में अच्छी जड़ के फुटाव के लिए एनएए, आईबीए, आईएए इत्यादि जैसे जड़ों को बढ़ावा देने वाले वृद्धि नियामकों का उपयोग किया जाता है। कलमों में अच्छी तरह जड़ें एवं तना विकसित होने के बाद अन्य स्थान पर रोपित कर देना चाहिए। कलम द्वारा तैयार पौधे पुष्प उत्पादन में कम समय लेते हैं।
सिंचाई: बरसात एवं जाड़ों के मौसम में कम सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। पानी की मात्रा पौधों की वृद्धि एवं विकास तथा सूर्य की रोशनी की तीव्रता पर निर्भर करती है। गुलाब के पौधों को सिंचाई सुबह 9 बजे से सायं 3 बजे के बीच में कर देनी चाहिए।
पोषण: गुलाब के पौधों की वृद्धि एवं विकास तथा गुणवत्तायुक्त अधिक मात्रा में पुष्प उत्पादन के लिए पोषक तत्वों को टपक सिंचाई के पानी के साथ प्रतिदिन देना चाहिए। पुष्प उत्पादन के दौरान पूर्ण पोषक तत्वों की मात्रा तथा जब पौधा सुप्तावस्था या पुष्प उत्पादन में न हो उस दौरान पूर्ण पोषक तत्वों के मात्रा की आधी मात्रा देना चाहिए। साधारण तौर पर नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश का 200 पीपीएम का घोल गुलाब के पौधों के लिए ज्यादा लाभदायक पाया गया है।
खरपतवार नियंत्रण: महीने में एक बार क्यारियों की ऊपरी सतह की मिट्टी की हल्की गुड़ाई करनी चाहिए। निराई-गुड़ाई करने से मिट्टी भुरभुरी बनी रहती है तथा जल भंडारण की क्षमता भी बढ़ जाती है। निराई-गुड़ाई करते समय यह सावधानी रखनी चाहिए कि गुलाब की पतली जड़ें न टूटे इसके लिए हल्की गुड़ाई करनी चाहिए।
कीट और रोग
एफिड: ये एक रस चूसने वाले कीट हैं। ये पत्तियों, तना तथा पुष्प कलियों का रस चूसते हैं। इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 1.5-2.0 मिली/ली पानी में घोलकर गुलाब के पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
लाल मकड़ी: यह कीट भी पत्तियों से रस चूसने का काम करती है इसके कारण प्रभावित पौधों की पत्तियां हरे से सफेद रंग में बदलने लगती हैं। गुलाब के पौधों पर हेक्साकोनाजोल 1 मिली/ली पानी में डालकर छिड़काव करने से लाल मकड़ी की समस्या धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है।
थ्रिप्स: थ्रिप्स एक सूक्ष्म आकार का भूरा रंग का कीट है। इसका प्रकोप गर्मी के मौसम में ज्यादा होता है। यह फूल के अंदर रहने वाला कीट है। इसकी रोकथाम के लिए रोगर 1.0 मिली/ली पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
रेड स्केल: ये कीट तनों पर चिपककर पौधों से रस चूसते हैं। कुछ समय पश्चात तना सूखने लगता है तथा धीरे-धीरे गुलाब के पौधे मर जाते हैं। इससे बचाव के लिए रोगर 1-1.5 मिली/ली या मोनोक्रोटोफॉस 1-1.5 मिली/ली पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिए।
रोग
पाउडरी मिल्ड्यू (चूर्णी फफूंदी): पाउडरी मिल्ड्यू से प्रभावित पौधों की पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफेद पाउडर जमा हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए कैराथेन 0.1 प्रतिशत या कैल्क्सिन 0.03 प्रतिशत के घोल का छिड़काव गुलाब के पौधों पर करना चाहिए।
डाउनी मिल्ड्यू (अंगमारी): डाउनी मिल्ड्यू से प्रभावित पंक्तियां धीरे-धीरे पीली पड़ती जाती हैं तथा पत्तियों के ऊपरी भाग पर गोल आकृति के काले धब्बे पड़ने लगते हैं। इसकी रोकथाम के लिए रिडोमिल 0.2 प्रतिशत या डाइथेन एम-45 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए।
काला धब्बा: इस रोग से पत्तियों पर काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं तथा पत्तियां झड़ना शुरू हो जाती हैं। इससे प्रभावित गुलाब के पौधों की बढ़वार बिल्कुल ही रुक जाती है। इसके कारण पुष्पण भी बहुत कम होता है। इसकी रोकथाम के लिए कैप्टॉन 0.2 प्रतिशत या बेनलेट 0.1 प्रतिशत के घोल का छिड़काव पौधों पर करना चाहिए।
उपज: गुलाब की खेती से विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्येक प्रजाति का उत्पादन भिन्न होता है। यह पूर्णतः उस क्षेत्र की जलवायु और प्रजाति की उत्पादन क्षमता पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर फ्लोरीबंडा वर्ग का गुलाब जो खुले फूलों के लिए उपयोग होता है, 3-3.5 क्विंटल/एकड़ की उपज देता है।
डाईबैक (शाखाओं का सूखना): पौधों की कटाई-छंटाई करने के बाद कटा हुआ भाग नीचे की तरफ सूखता जाता है। यदि इसकी रोकथाम समय पर नहीं हो पाती है तो पौधे मर जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए गुलाब के पौधों की कटाई-छंटाई के उपरांत बाविस्टिन का 0.2 प्रतिशत का घोल बनाकर पौधों पर छिड़क देना चाहिए।
पौध रोपण: गुलाब का पौध रोपण करते समय दिन का तापमान 25 से 27 डिग्री सेंटीग्रेड तथा रात का तापमान 12 से 19 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य होना चाहिए। मैदानी क्षेत्र में गुलाब का रोपण अक्टूबर से नवंबर तथा फरवरी से मार्च माह में किया जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में गुलाब के रोपण का समय सितंबर से अक्टूबर तथा मार्च उपयुक्त होता है। पौध रोपण के एक दिन पहले क्यारियों को हल्का नम कर देना चाहिए।
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