चाइना एस्टर एक वार्षिक फूल वाला पौधा है। यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों जैसे पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में बहुत लोकप्रिय है। चाइना एस्टर में छोटे बटन के आकार से लेकर बड़े, एकल और दोहरी पंखुड़ी वाले सफेद, गुलाबी, बैंगनी, लाल और गहरे भूरे रंग के फूल होते हैं। चाइना एस्टर कटे हुए फूलों (डंठल वाले फूलों) के लिए भी उपयुक्त है। चाइना एस्टर के फूलों का उपयोग माला, पूजा और सजावट के तौर पर भी किया जाता है। विभिन्न रंगों के फूलों के कारण इन्हें बाग-बगीचों के लिए भी उपयोग किया जाता है। विशेष रूप से चाइना एस्टर की छोटी किस्मों को अन्य मौसमी फूलों के साथ बागों के चारों ओर भी लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इन फूलों को गमलों में भी लगाया जा सकता है। चाइना एस्टर के तने सहित फूलों को पानी में लंबे समय (7 से 10 दिन) तक रखा जा सकता है। ये फूल सजावट के लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं।
- अर्का कामिनी - गहरे गुलाबी फूल
- अर्का पूर्णिमा - सफेद रंग के फूल
- वायलेट कुशन - बैंगनी रंग के फूल
- अर्का शशांक - पाउडर पफ हुए भूरे सफेद फूलों की तरह
- अर्का अद्या - गुलाबी रंग के फूल
- अर्का अर्चना - सफेद रंग के फूल
इनके अलावा महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, पुणे द्वारा भी चाइना एस्टर की विभिन्न किस्में विकसित की गई हैं।
- फुले गणेश पिंक - गुलाबी रंग के फूल
- फुले गणेश पर्पल - बैंगनी रंग के फूल
- फुले गणेश व्हाइट - सफेद रंग के फूल
- फुले गणेश वायलेट - बैंगनी रंग के फूल
वहीं चाइना एस्टर की प्रमुख विदेशी किस्में ज्वाइंट रॉकेट, ला प्लाटा, फिलिपुट, ऑस्ट्रिच ह्यूम, ऑस्ट्रिच फेदर, कैग्रो, ज्वाइंट कॉमेट, ज्वाइंट ग्रीगो, मत्सु मोटो, क्योटो पोम्पोम, हिलार्डी आदि हैं।
जलवायु: चाइना एस्टर को ठंडी जलवायु पसंद है। भारत में सर्दियों के मौसम के दौरान इसके अच्छी गुणवत्ता वाले फूल प्राप्त किए जा सकते हैं। इसके लिए दिन का तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 15-17 डिग्री सेल्सियस तथा आर्द्रता 50-60 प्रतिशत होनी चाहिए। पौधों की वृद्धि और फूल आने के लिए खिली धूप आवश्यक है। धूप वाले स्थान पर पौधे सबसे अच्छे से पनपते हैं।
प्रजनन और नर्सरी व्यवस्थापन: चाइना एस्टर का प्रजनन बीज द्वारा किया जाता है। उच्च गुणवत्तायुक्त नर्सरी तैयार करने के लिए, एक मीटर चौड़ी क्यारियां तैयार की जाती हैं। क्यारी में दो पंक्तियों में 4-6 सेमी की दूरी रखते हुए बीज की बुवाई की जाती है। बीज के अंकुरित होने तक धान के भूसे या खजूर के पत्तों से क्यारियों को ढक दिया जाता है तथा बीज अंकुरित होने पर हटा दिया जाता है। क्यारियों में हजारे की सहायता से आवश्यकतानुसार पानी दिया जाता है। एक हेक्टेयर फसल की रोपाई के लिए 650-700 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। चाइना एस्टर बीजों का अंकुरण लगभग एक वर्ष के भीतर समाप्त हो जाता है, इसलिए हर साल रोपण के लिए नए बीजों का उपयोग किया जाना चाहिए।
मिट्टी की तैयारी: चाइना एस्टर की खेती हल्की से भारी काली मिट्टी में भी की जा सकती है। चाइना एस्टर को 6.5 से 7.5 पीएच मान तथा अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। पौध रोपण से पूर्व, मिट्टी की 2-3 गहरी जुताई करनी चाहिए, फिर बड़े ढेलों को तोड़ देना चाहिए, जलभराव की समस्या से बचाव के लिए मिट्टी को समतल करना चाहिए। खेत में क्यारियों की ऊंचाई 15 सेमी, चौड़ाई 1-2 मीटर और लंबाई सुविधानुसार होती है।
पौधरोपण: भारत में रोपाई का समय विभिन्न स्थानों की जलवायु पर निर्भर करता है। उत्तर भारत में चाइना एस्टर की देर से फूलने वाली किस्मों को अगस्त-सितंबर में लगाया जाता है। जबकि दक्षिण भारत में रोपण के लिए सितंबर-अक्टूबर उपयुक्त है। गुजरात में, रोपण सितंबर से दिसंबर के पहले पखवाड़े तक किया जा सकता है। चाइना एस्टर पौध की रोपाई तब की जाती है जब बीज बोने के 40-45 दिनों के बाद पौधों में 4 से 5 पत्तियां आ जाती हैं। पौध रोपण सामान्यतः शाम को करना चाहिए। पौधों को 30 सेमी × 30 सेमी की दूरी पर लगाया जाता है। रोपाई के बाद एक सप्ताह तक, पौधे को उचित वृद्धि के लिए सुबह या शाम को सीमित मात्रा में पानी दिया जाता है।
खाद एवं सिंचाई: पौधों की बेहतर वृद्धि और गुणवत्तायुक्त फूल उत्पादन के लिए, भूमि की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टन अच्छी तरह सड़ी तथा छानी हुई खाद डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त 90 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस तथा पोटाश 60 किग्रा/हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी के समय तथा शेष आधी मात्रा 40-45 दिनों के पश्चात खड़ी फसल में देनी चाहिए।
मिट्टी की दशा को ध्यान में रखकर फसल को नियमित रूप से पानी देना चाहिए, लेकिन पानी अधिक मात्रा में या बहुत ही कम भी नहीं देना चाहिए। जब पौधा अच्छी तरह बढ़ने और विकसित होने लगे तो सप्ताह में एक या दो बार पानी देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण: चाइना एस्टर में गहरी निराई-गुड़ाई आवश्यक नहीं है लेकिन समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके मिट्टी को खरपतवारमुक्त करना चाहिए। खेत की तैयारी के समय हैरो से हल्की जुताई करने से मिट्टी ढीली हो जाती है और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। निराई-गुड़ाई के बाद स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जैविक पलवार (धान का भूसा, गन्ने का भूसा) बिछाने से भी अच्छे परिणाम मिलते हैं।
विपणन: फूलों को बाज़ार में भेजने से पहले रंग, आकार, गुणवत्ता के आधार पर उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बांटा जाता है। यदि निकट के स्थानीय फूल बाज़ार में बिना डंठल के फूलों को भेजा जा रहा है तो उन्हें बोरे में पैक किया जाता है। वहीं डंठल वाले फूलों को बक्सों में पैक किया जाता है जिससे उन्हें बड़े शहरों के बाज़ारों में भी भेजा जा सके। चाइना एस्टर के फूलों की कीमत बाज़ार में 150 से 200 रुपये किलोग्राम तक होती है।
कीट एवं रोग: चाइना एस्टर की फसलें विशेष रूप से माइट, लीफ माइनर, एफिड, कैटरपिलर जैसे कीटों तथा जड़ सड़न, कॉलर रॉट और विल्ट जैसे रोगों के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं। स्पाइडर माइट के नियंत्रण के लिए कैलाथेन दवा 1 मिली/ली पानी का छिड़काव करें। लीफ माइनर के नियंत्रण के लिए क्लोरोडेन या टॉक्सफेन दवा 1.5 मिली/ली पानी में घोलकर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
कॉलर रॉट और जड़ सड़न को रोकने के लिए रिडोमिल दवा का 2 ग्राम/ली पानी में घोल बनाकर पौधों के जड़ क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए। मुरझाना या 'फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम' फफूंदी से होने वाला मृदाजनित रोग है। इसके नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले बीजों को उपचारित किया जाता है और पौधों पर कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर घोल का छिड़काव किया जाता है।
अन्य कृषि क्रियाएं
पिंचिंग (शीर्ष कर्तन): रोपाई के 30 से 40 दिनों बाद, पौधे के शीर्ष को हाथ से हटा दें, ताकि शीर्ष से नए अंकुर तेजी से निकलें और पौधा बेहतर ढंग से बढ़वार करे, जिसके परिणामस्वरूप अच्छी गुणवत्ता के अधिक फूल आएंगे। कभी-कभी, जब रोपाई देर से की जाती है, तो फूल की कली डंठल पर जल्दी बैठ जाती है। फिर भी कली को तोड़कर हटा देना चाहिए, ताकि पौधा अपना वानस्पतिक विकास पूर्ण कर सके।
फूलों की तुड़ाई: रोपण के 50 से 60 दिनों बाद फूल आना शुरू हो जाते हैं। चाइना एस्टर के फूलों को सुबह जल्दी या देर शाम को खपत के अनुसार काटें। ढीले फूलों को पूरी तरह खिलने पर बिना तने के काट देना चाहिए, जबकि तने वाले फूलों के लिए 30 सेमी तक तने के साथ काटना चाहिए।
स्टेकिंग (पौधों को सहारा देना): उचित रोपण के 45 से 50 दिनों बाद फुले गणेश पिंक, फुले गणेश पर्पल, फुले गणेश वायलेट जैसी किस्मों के तने वाले फूलों के लिए बांस की डंडियों से सहारा देने की आवश्यकता होती है ताकि मिट्टी पर गिरकर फूलों की गुणवत्ता खराब न हो जाए।
उपज: एक अच्छी तरह से प्रबंधित खेत से प्रति हेक्टेयर लगभग 18-20 टन खुले फूल प्राप्त किए जा सकते हैं और कतरित पुष्पों की उपज 8-9 लाख/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
बीज संग्रह: चाइना एस्टर के फूलों से गुणवत्तायुक्त बीज प्राप्त करने के लिए, फूलों को सुखाकर, उनसे बीज अलग करके बीजों को छाया में सुखाना चाहिए, फिर एक वायुरोधी एल्यूमीनियम थैली में भरकर, 6 से 7 माह तक ठंडे और शुष्क स्थान पर संग्रहित करना चाहिए।
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