पुष्पीय पौधे तवांग ज़िले के नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित प्रत्येक पारंपरिक घरों की सज्जा के अभिन्न अंग हैं। स्थानीय जनजाति मोनपा में पत्तेदार सब्जियों के बीज एवं पौध के पश्चात पुष्पीय पौधों की मांग सबसे अधिक है। तवांग में अवस्थित कई सरकारी संस्थानों एवं सैन्य प्रतिष्ठानों में राष्ट्रीय पर्वों आदि के आयोजन में मंच सज्जा, पुष्प गुच्छ, माल्यार्पण आदि के लिए गेंदा के सवृंत एवं खुले पुष्पों की मांग अत्यधिक बढ़ जाती है। इसे स्थानीय किसान पूर्ण कर अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् तवांग में गेंदा उत्पादन एक लाभकारी खेती साबित हो सकता है।
गेंदा के फूल को भरपूर वृद्धि एवं पुष्पण के लिए मृदु जलवायु की आवश्यकता होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण तवांग के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में गेंदा की ग्रीष्मकालीन (अप्रैल से अगस्त) फसल 9500 फीट तक ऊंचाई पर ली जा सकती है।
मृदा एवं क्यारी निर्माण: गेंदा की बौनी किस्में (फ्रेंच मैरीगोल्ड) विभिन्न प्रकार की मिट्टी के लिए अनुकूलित होती हैं, हालांकि तवांग की पहाड़ी मृदा में बालू और छोटे कंकड़ की अधिकता पाई जाती है। इन्हें 5 किग्रा कार्बनिक खाद प्रति वर्ग मीटर क्यारी में डालकर गेंदा की खेती के लिए उपयुक्त बनाया जा सकता है। खुले प्रक्षेत्र में मिट्टी की 10 सेमी गहरी जुताई के समय इस खाद को मिट्टी में मिलाकर 15 सेमी ऊंची उठी हुई क्यारियां बनानी चाहिए।
पौधशाला: ऊंची उठी हुई क्यारियों में गेंदा के बीज बुवाई का उपयुक्त समय मध्य अप्रैल से मई का प्रथम सप्ताह है। पारंपरिक क्यारियों में बीजों को पंक्तियों में 3 सेमी की दूरी पर एवं 7 सेमी पंक्ति से पंक्ति की दूरी के साथ 2 सेमी गहरा बोना चाहिए। रात्रि तापमान नियमन के लिए क्यारियों या प्रो-ट्रे को श्वेत श्याम पॉलीथीन (50μ) या सूखी पत्तियों की पलवार से 2-3 दिनों के लिए ढकना चाहिए जिसे जमाव दिखते ही हटा देना चाहिए।
मृदारहित पौध को कोकोपीट, वर्मीकुलाइट एवं परलाइट (3:1:1) के उपचारित मिश्रण में 1-1.5 सेमी की गहराई में बोकर तैयार किया जा सकता है। मृदारहित पौध बीजों के शत-प्रतिशत जमाव एवं पौधों के सुरक्षित स्थानांतरण को सुनिश्चित करती है।
प्रजाति और किस्में: गेंदा की फ्रेंच मेरीगोल्ड प्रजाति बौनी और जलवायु के प्रति अपेक्षाकृत सहनशील होती है। तवांग के खुले क्षेत्रों में इसे आसानी से उगाया जा सकता है। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान संस्थान की दो किस्में यथा - अर्का हनी (नारंगी) एवं अर्का परि (पीली) तवांग में ग्रीष्मकालीन खुले क्षेत्र एवं पॉलीहाउस खेती के लिए उपयुक्त पाई गई हैं। अफ्रीकन गेंदा की पूसा बसंती किस्म ग्रीनहाउस के अंदर उगाई जा सकती है।
रोपाई एवं उपयुक्त समय: गेंदा की 30-35 दिनों पुरानी 4-5 पत्तीयुक्त पौध को पॉलीहाउस में ऐच्छिक तापमान नियमन के कारण रोपने का समय अप्रैल के अंतिम सप्ताह से मई के प्रथम सप्ताह तक उपयुक्त है, जबकि खुले प्रक्षेत्रों में मध्य मई से जून के प्रथम सप्ताह तक 30 × 30 सेमी रोपण दूरी पर मेड़ के पार्श्व में रोपा जा सकता है। मध्यम आकार के लटकाने वाले गमलों (गहराई 16 सेमी × चौड़ाई 22.5 सेमी) में मृदा या मृदारहित माध्यम में रोपाई की जा सकती है। गमलों में रोपाई के लिए मृदायुक मिश्रण मृदा, बालू एवं वर्मीकंपोस्ट को 60:20:20 के अनुपात में जबकि मृदारहित मिश्रण कोकोपीट, वर्मीकुलाइट एवं परलाइट को 3:1:1 में मिलाकर एवं सौरतापीकरण से उपचारित कर तैयार किया जा सकता है।
मिट्टी चढ़ाना: खुले प्रक्षेत्रों में रोपाई के 3-4 सप्ताह बाद की जाने वाली यह सस्य क्रिया पौधों को गिरने से बचाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो पुष्पों की उपज को सुनिश्चित करती है।
पोषक तत्व प्रबंधन: तवांग की मृदा में कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में गेंदा की खेती रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के बिना की जा सकती है, हालांकि खुले प्रक्षेत्रों में मृदा उत्पादकता बनाए रखने के लिए 5 किग्रा कार्बनिक खाद प्रति वर्ग मीटर क्यारी, एवं पॉलीहाउस के अंतर्गत गमलों में पुष्पण प्रारंभ के समय एनपीके (20:20:20) के 0.3-0.5% के एक एवं पूर्ण पुष्पण अवस्था में 20 दिनों के अंतराल पर 2-3 पर्णीय छिड़काव से पुष्पों की प्रति इकाई भरपूर उपज प्राप्त होती है।
सिंचाई: तवांग में प्रचुर ग्रीष्मकालीन वर्षा के कारण खुले प्रक्षेत्रों में सामान्यतः सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है किंतु उचित जल निकास का प्रबंधन पौध सुरक्षा के लिए वांछनीय है। पॉलीहाउस एवं ग्रीनहाउस में उगाई गई फसल में सुबह के समय हजारे से हल्की सिंचाई करनी चाहिए। पूर्ण पुष्पण अवस्था में पुष्पों की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए सिंचाई जड़ क्षेत्र में करनी चाहिए।
रोग एवं कीट प्रबंधन: तवांग की जलवायु परिस्थितियों में किसी भी गंभीर रोग व कीट आदि की समस्या नहीं पाई जाती है। अपितु गेंदा की गोभीवर्गीय सब्जियों के साथ सहफसली खेती माहूं एवं सूत्रकृमि के प्रबंधन आदि के लिए उपयुक्त है।
उपज: मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा तवांग में रात्रि तापमान की गिरावट के कारण गेंदा की अर्का परी एवं अर्का हनी किस्मों की उपज खुले प्रक्षेत्रों में क्रमशः 200-250 पुष्प एवं 175-200 पुष्प प्रति पौधा पाई गई है। जबकि पॉलीहाउस के अंतर्गत ऊर्ध्वाधर गमलों में रोपी गई फसल से प्रति पौधा लगभग 250-300 पुष्प उत्पादन लिया जा सकता है।
ग्रीनहाउस में गेंदा की खेती के लाभ
- गेंदा के पौधे की जड़ से अल्फा टरथिएनाइल नामक प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले अत्यंत विषैले रसायन का स्राव होता है। यह जड़-ग्रंथि कारक सूत्रकृमि के अंडे से शिशुओं के निकलने की प्रक्रिया को बाधित करता है। इस प्रकार यह फसलों में सूत्रकृमि के गैर रासायनिक प्रबंधन के लिए उपयुक्त आवरण फसल है।
- पुष्पों का आकर्षक पीला, नारंगी एवं बसंती रंग परागणकर्ता कीटों को आकर्षित कर सब्जी फसलों विशेषकर टमाटर एवं कद्दूवर्गीय फसलों के लिए एक महत्वपूर्ण सहफसल का कार्य करता है।
- टमाटर आदि फसलों में गेंदा (3:1) के प्रचुर संख्या में उपलब्ध पुष्प फल बेधक कीट के डिंभ के लिए एक सुगम भोज्य प्रदान करते हैं। अतः यह एक प्रभावी पाश (ट्रैप) फसल का कार्य करता है।
- इसके अतिरिक्त तवांग में कई लोक/सरकारी आयोजनों में मंच सज्जा, माला आदि के लिए खुले फूलों की उपलब्धता नगण्य है जिसे गेंदा की संरक्षित खेती के द्वारा पूर्ण कर अधिक लाभ लिया जा सकता है।
सावधानियां
- खुले प्रक्षेत्रों में तापमान गिरावट की दशा में 75 सेमी ऊंचाई की लो टनल (200μ) बनाकर शाम के समय पौधों को ढक देना चाहिए, एवं दिन के समय आवरण हटा देना चाहिए।
- मृदारहित माध्यम में उगाई गई फसल में वर्मीकंपोस्ट 50 ग्राम प्रति गमले की दर से देने पर अधिक तथा लंबे समय तक पुष्प प्राप्त होते हैं।
- तवांग में ग्रीष्म ऋतु के मध्याह्न में पॉलीहाउस का तापमान 40-45°C तक पहुंच सकता है। इसे पार्श्व पॉलीथीन आवरण को हटाकर उचित वातायन सुनिश्चित करना चाहिए।
- लघु अवधि में मौसम के उतार-चढ़ाव के दृष्टिगत तवांग के 9500 फीट से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गेंदा की खेती पॉलीहाउस या ग्रीनहाउस आदि के अंतर्गत ही की जानी चाहिए।
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